राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के नोहर तहसील का इतिहास
नोहरिया @ 26 - 12 - 2018
विरासत:-
नोहर अपने पुरानी हवेलियों के लिए भी जाना जाता है,ये हवेलियां उन सेठों (बणियों) की हैं जो अर्सा पहले कलकत्ता, मद्रास, हैदराबाद या अन्य स्थानों पर चले गए. पीढियां गुजर गईं. इन हवेलियों में से कुछ के ही वारिस अब यहां आते हैं. इनकी देखभाल करते हैं. बाकी सब ऐसे ही सुनसान पड़ी हैं, जर्जर होती, ढहती. इन हवेलियों को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि संपन्नता यहां बहुत पहले से ही है। इसके अलावा शहर में बना सुर्य भगवान का सुर्य भवन मंदिर जिले का एकमात्र मंदिर है।शिक्षा:-
शिक्षा के क्षेत्र में जिले का सबसे बड़ा और पुराना राजकीय महाविद्यालय नोहर में है। वर्ष १९८४ में नगर सेठ गौरीशंकर बिहानी द्वारा क्षेत्र की जरूरत को महसूस करते हुए अपनी पत्नी की स्मृति में तब के श्रीगंगानर जिले के एकमात्र सरकारी महाविद्यालय की स्थापना नर्बदा देवी बिहानी राजकीय महाविद्यालय के रूप में की। इस महाविद्यालय से पढक़र हजारों युवाओं ने अपना भविष्य बनाया है। आज नोहर शिक्षा नगर के रूप में अपनी पहचान कायम करने में लगा हुआ है। गत वर्षो में अनेक नीति शिक्षण संस्थानों,कम्प्यूटर सेंटरों,विभिन्न कोंचिग सेन्टरों के ख्ुालने से क्षेत्र में शैक्षणिक गतिविधियां बढ़ी है। वही यहां के विद्यार्थियों में आईएएस,आरएएस,आरजेएस,पीएमटी,सीपीएमटी,आईआईटी,सीए,बीएड के प्रति रूझान बढ़ा है। यहां दिनों दिन खुल रहे नामी कोचिंग सेंटरों की शाखाएं और इंगिलश मीडियम स्कूल इस बात का परिचायक है। नोहर में शिक्षा की गुणवत्ता में लगातार सुधार हुआ है। नोहर के हाई स्कूल के तीन-तीन बच्चों को स्टेट मैरिट के पहले तीनों स्थानों पर आना यह दर्शाता है कि शिक्षा के क्षेत्र में नोहर की पहचान कोटा-सीकर के बाद होने लगी है।
साहित्य:-
साहित्य के क्षेत्र में नोहर सर्वगुण सम्पन्न है। क्षेत्र में चंद्रसिंह बिरकाळी,करणीदान बारहठ,राजकुमार ओझा जैसे विख्यात सहित्यकार हुए है। क्षेत्र में समय-समय पर साहित्यिक गतिविधियों का संचालन होता रहता है। क्षेत्र का गांव परलीका साहित्यिक गांव कहलाता है। परलीका में रामस्वरूप किसान,सत्यनारायण सोनी,विनोद स्वामी, लम्बे समय से साहित्य के क्षेत्र में कार्य कर रहे है। यहां से उठी राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग पूरे राज्य में फैल गई है। साहित्यकार भरत ओळा केन्द्रिय साहित्यिक अकादमी से पुरस्कृत हो चुके है। कस्बे में साहित्यके प्रति अच्छा माहोल है।
खेल:-
फुटबाल के क्षेत्र में नोहर की पहचान देशभर में है। यहां के फुटबाल के खिलाडिय़ों ने राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पहचान बनाई है। संभाग का विशाल स्टेडियम नोहर में स्थित है। सुविधाओं के नाम पर बिहाणी स्टेडियम दम तोड़ रहा है। सुविधाएं नही मिलने से प्रतिभाएं आगे नही बढ़ पा रही है। खेल प्रशिक्षक का पद वर्षो से खाली है। इस कारण खिलाडिय़ों की नई पौध तैयार नहीं हो पा रही है। यहां का दशहरा फुटबाल टूर्नामेंट तो देश-देसावर तक अपनी पहचान रखता है।
आवश्यकताएं:-
आजादी के ६१ वर्ष बाद भी क्षेत्र के लोग अपनी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। इन सबके लिए कही ना कही क्षेत्र के जनप्रतिनिधि बराबर के भागीदार है,जिन्होंने कभी बुलन्द आवाज में क्षेत्र की समस्याओं को नही उठाया। नोहर के विकास में क्षेत्र के प्रवासियों का अमूल्य योगदान रहा है। अगर इन प्रवासियों का योगदान निकाल दिया जाए तो नोहर का विकास नगण्य नजर आता है। नोहर के विकास में बिहाणी,पेडि़वाल,डागा,नेवर,कंदोई,जाजू,पचीसीया,थिरानी आदि परिवारों का योगदान कभी विस्मृत नही किया जा सकता। कस्बे में विद्यालय,कॉलेज,चिकित्सालय,धर्मशालाएं,मन्दिर,स्टेडियम,सीमेन्ट सडक़,न्यायलय भवन,मुख्य चौक,पेयजल,सिलाई केन्द्र,गौशालाएं,पुस्तकालय,घण्टाघर आदि प्रवासियों की ही देन है। कस्बे के विकास में गोरीशंकर विहाणी चेरिटेबल ट्रस्ट का सबसे ज्यादा योगदान रहा है,क्योकि इन्होंने कस्बे का ऐसा कोई क्षेत्र नही छोड़ा जहां विकास की गंगा न बहाई। क्षेत्र के प्रवासियों में अपनी मातृभूमि के प्रति कुछ न कुछ करने की ललक बनी रहती है। चाहे वे देश के किसी भी कोने में बसे हो। उन्हें अपनी मातृभूमि में कुछ नया विकास कार्य करवाने की चाहत बनी रहती है। प्रवासियों के अनुसार मातृभूमि का ऋण कभी चुकाया नही जा सकता है। मातृभूमि पर विकास कार्य करवा कर मन को जो असीम शांति व सूकून मिलता है। उसे बया नही किया जा सकता । इन सब के बावजूद भी नोहर क्षेत्र में ऐसा बहुत कुछ है जिसे करवाया जाना जरूरी है। कस्बे नागरिक सामाजिक व मानसिक समृद्ध है। क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने जहां राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। लेकिन वे विकास को गति नही दे पाये। नोहर कस्बे अपने अतीत से वर्तमान तक अनेक उतार-चढाव देख चुका है। जहां एक ओर पूराना शहर आबादी के दबाव से और घना आबाद होता रहा वहीं चारों ओर इसका फैलाव होने से इसकी सीमाएं और बढ़ती गई। कस्बे के सेक्टर नं.,नंदाकलोनी,दुर्गा कॉलोनी,इन्द्रा कॉलोनी,आदर्श कॉलोनी,नेहरूनगर आदि विकसित हुई,मगर आबादी के अनुपात में इनका विकास नही हो पाया। यदि सारा मिस्त्री मार्केट विश्वकर्मा मार्केट या मॉडल टाऊन केन्द्रित होता तो एक बड़ा व्यवस्थित बाजार विकसित हो सकता था।
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